king mihir bhoj a forgotten rajput hero
king mihir bhoj a forgotten rajput hero
king mihir bhoj a forgotten rajput hero. हमारे पूर्वजों की है ऐसी कहानी। जिनके डर से अरब भी मांगते थे जान की दुहाई।
जानिए कौन थे महान हिन्दू सम्राट मिहिर भोज: जिनके नाम से थर-थर कांपते थे अरबी और तुर्क
आज हम आपको एक ऐसे सम्राट की कहानी बताने वाले हैं, जो कि हमारे देश का एक महान शासक था। वो राजा थे प्रतिहार वंश के नवमी शताब्दी के मिहिर भोज। उनकी ख्याति चक्रवर्ती गुप्त समारत से किसी भी मान्य में कम नहीं थी। उनका राज्य व्यवस्था, आकार, प्रशासन, और धार्मिक स्वतंत्रता में किसी से भी कम नहीं था। उनके राज्यकाल में देश पर कई तरह के शत्रुओं ने परहार किया था। उनपर कभी तुर्कियों ने, और कभी अरबों ने हमले किये, पर उन्होंने उन सब तो बुरीतरह हराकर भगा दिया। और वह ऐसा भागे की वह एक शताब्दी तक डर के मारे लौटे ही नहीं।
King Mihir Bhoj
कहते हैं की उनका एक चुम्बिकिय व्यक्तित्व था, उनकी बहुत बड़ी भुजाये थी, और विशाल नयन थे। उनका लोगों पर एक विचित्र सा प्रभाव पड़ता था। वो हर शेत्र में निपुण थे। कहा जाता है की वो एक प्रबल पराक्रमी, महानधार्मिक, राजनीती में निपुण, और एक महान सम्राट थे। हम यह कह सकते हैं की वो भारत के एक निष्ठावान शासक थे। उनका राज्य विश्व में सबसे शक्तिशाली था। उनके राज्य में चोर और डाकुओं से कोई भय नहीं था। सब लोग आर्थिक सम्पन्नता से खुश थे। आप को यह जानकर ख़ुशी होगी की इनके राज्यकाल में ही भारत को सोने की चिड़िया कहा जात था।
अरब भी मांगते थे जान की दुहाई
पर दुःख की बात तो यह है, की इस पराक्रमी सम्राट का हमारी साहित्य की किताबों में कही भी ज़िक्र नहीं है। सम्राट मिहिर भोज के राज्यकाल में ही सबसे ज्यादा अरबी म्सुलिम लेखक भारत आये, और लोगों की उन्नति देखकर चौकन्ने रह गए। अपने देश लौट कर उन्होंने भारत के गुणगान करा और जो देखा था उसका विस्त्र में विवरण किया। और इनता ही नहीं, क्या आप जानते है की उनके राज्यकाल में उनके राज्य आधे विश्व तक फैला हुआ था। उनक ऐसा डर था अरबों और मुसलमानों में की उन्हें छिपने के लिए जगह कम पढ़ रही थी। इस बात का विवरण मुस्लिम इतिहासकार बिलादुरी सलमान और अलाम्सुदी ने अपनी किताबों में किया है। मिहिर भोज ने 836 से 885, लगभग पचास साल तक राज़ किया।
उनका जन्म सूर्यवंशी शत्रिया कुल में हुआ था
उनका जन्म सूर्यवंशी शत्रिया कुल में हुआ था। कहते है वेह महारानी अप्पा देवी की उपसना का फल थे । मिहिर भोज के बारे में बहुत ज्यादा नहीं पता है। जो जानकारी है वो वराह तम्र्शासन से मिली है। कहते हैं उनका राज्य मुल्तान से पश्चिम बंगाल और कश्मीर से कर्नटक तक फैला हुआ था। वेह शिव और शक्ति के उपासक थे। कहा जाता है की वेह सोमनाथ के परम भक्त थे, और उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ था। 49 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल प्रतिहार को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। सम्राट मिहिर भोज ने एक सिक्का भी चलाया था।
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उन्होंने कन्नौज को देश की राजधानी बनाने था। सम्राट मिहिर भोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णु के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी।
उनकी बहादुरी के किस्से आप के साथ बांटकर आज हमने, उन्हें अपनी भाव पूर्ण श्रधांजलि दी है।
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सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी
सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया या सिसोदिया एक राजपूत गुर्जर राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी छत्रीय थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं।
‘गुहिल’ या ‘गेहलोत’ ‘गुहिलपुत्र’ शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है।
कुछ समय तक चित्तौड़ गुर्जर प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया